खजूर बड़ा के ताड़
किसी ज़माने दो प्रेमी
एक खजुरी तो एक ताड़ी
खजुरी ने खाया फल
बीज बिखेर बोला हे ताड़ी
प्रेम का फूल खिले यहाँ
ताड़ी ने भी खाया ताड़
गेर के बीज बोला हे खजूर
प्रेम का फूल खिले तो यहाँ!
बीते बरस बीते साल
बरखा धरती इश्वर का कमाल
धुप छाओं खेल खेल
एक ताड़ तो एक खजूर का पेड़
दोनों के पत्ते उलझ उलझ
हवा में मस्त मादक
बारिश में झूम झूम
खेल खेल ताड़ खजूर
बीते बरस बीते साल
बरखा धरती इश्वर का कमाल
बढ़ने लगा ताड़ बढ़ने लगा खजूर
किरणों की चाहमें एक देखे पूरब
तो किरण पाने को दूजा पश्चिम
कुछ और टेढ़ा कुछ और झुका
हवा में फिर भी मस्त मादक
पर धीरे धीरे दिशा बदली
आअकर बदला, बदल गया कद
बाकी था कुछ तो बीते बरस ने
बदल दिया रुत के साथ
बदल गयी सोच
क्यों की ज्यों ही लगे फल
तो एक था खजूर एक था ताड़
फैली इर्ष्य फैला अहं
ताड़ खजूर का प्रेम ताड़ ताड़
बहस में बोले ताड़ मै बड़ा
खजूर बोला मै भी कम कहाँ
फल तक आना हे आसान
तन हे मेरा सीढ़ी नुमा
ताड़ बोले मेरा फल भरे पेट
तो ताड़ी दे मादक तरल
बुझाये प्यास करे मादक
पी ले तू भी भुला ले ग़म
खजूर कहे , हे ताड़
तू कर रहा है मादकता का प्रचार
मेरा फल सूखे तो भी आये काम
भरे पेट चले सालो साल
यों हे बहस चलती रही
भूले दोनों, के जड़े
अब भी, दोनों की उलझी पड़ी
तेज़ हवा से एक दुसरे को
दोनों बचाते है अब भी
भूला ताड़ के खजूर के कांटे
करते थे रक्षा उसकी डांगर से
जब ताड़ था जवान
और भूला खजूर के
ताड़ की चुम्बिश सहलाती थी
भरती थी कांटो की जलन
बीते बरस बीते साल
बरखा धरती इश्वर का कमाल
बिजली इंसान कुल्हाड़ी कराल
कटे दोनों पड़े हुए थे
अट्टालिका का काम शुरू हुआ था
प्रेम की धरती से फूटे
दोनों पड़े धरती पे लहू लुहान
जड़े अभी भी सोच रही
क्या यही थी परिनती
चंद पल थे मुट्ठी में
बिता लेता इर्ष्य द्वेष में
या फिर हस्त चहकते
लहलहा लेता बरखा में
बाहों में बाहें डाले
अपनी तारीफ़ ना कर
एक दुसरे के तारीफ़ में
शायद होता सकूँ
दोनों के दिल में तब जब
धरती पे गिरते समाये भी
दोनों की टहनिय भी
जड़ो की तरह उलझ उलझ
टकर टकर भिड भिड
गिरती ज़मीन पे
फल बिखरते लुढ़कते संग संग
कदमो पे आ गिरते किसी प्रेमी के
जो खाता एक ताड़ी
जो खाता एक खजूरी....
प्रोनील
(२६ अगस्त १०)
Khajur bada ke Taad by Khajur bada ke Taad is licensed under a Creative Commons Attribution 3.0 Unported License.
Human being is different from all other animals because they can think and communicate. I started penning down my thoughts when I turned 10 years old. A journey from paper to web, and pen to keyboard, the world has changed but the thoughts are still born and communicated in many form. I am still sharing my thoughts because i believe that thoughts would still be there even if I am not there. Hope you would love reading my blogs and this would give you a new directions in your life.
Thursday, August 26, 2010
Tuesday, August 3, 2010
रुक के मुस्कुराने को
रुक के मुस्कुराने को
ज़िन्दगी की रज़म में यों उलझे पड़े हम
अपने मलाल पे मुस्कुराने का मौका पा लेते हैं
जब पीछे मूढ़ कर उन रास्त राहों को देखते हैं
जिनपे शाद हो हम दौड़ा करते थे
जब जबीन पे बेफिक्री का मकाम होता था
आसमान नीचे और ज़मीन ऊपर था....
योंही दौड़ते दौड़ते ना जाने वोह रास्त राह
कब पेचीदा हो चली
ज़िन्दगी की रफ़्तार यों बढ़ सी चली
कब ना जाने मजमा इकठ्ठा हो चला
और वहीँ हम अपने बचपन को ज़ाइ कर बैठे
कब ना जाने वोह गीली सी ज़मी वोह हवा की नमी
खुश्क और ख़ाक में बदल गई
वक़त यू गुज़रा के खबर ही ना हुई
फिर भी आज हम उम्मीद का दामन पकडे
अपने इतिहास के वोह पन्ने टटोलते हैं
चंद पल मुस्कुराके
फिर से ज़िन्दगी के रज़म में उलझ पड़ते हैं
जब यह कार ख़तम होगा
तो फिर से उम्मीद हैं के राह रास्त होगी
उसी पे चलेगा कारवां
और खुदा से मुलाकात होगी.
प्रोनिल (२८ अगस्त २००६)
रुक के मुस्कुराने को is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial 3.0 Unported License.
ज़िन्दगी की रज़म में यों उलझे पड़े हम
अपने मलाल पे मुस्कुराने का मौका पा लेते हैं
जब पीछे मूढ़ कर उन रास्त राहों को देखते हैं
जिनपे शाद हो हम दौड़ा करते थे
जब जबीन पे बेफिक्री का मकाम होता था
आसमान नीचे और ज़मीन ऊपर था....
योंही दौड़ते दौड़ते ना जाने वोह रास्त राह
कब पेचीदा हो चली
ज़िन्दगी की रफ़्तार यों बढ़ सी चली
कब ना जाने मजमा इकठ्ठा हो चला
और वहीँ हम अपने बचपन को ज़ाइ कर बैठे
कब ना जाने वोह गीली सी ज़मी वोह हवा की नमी
खुश्क और ख़ाक में बदल गई
वक़त यू गुज़रा के खबर ही ना हुई
फिर भी आज हम उम्मीद का दामन पकडे
अपने इतिहास के वोह पन्ने टटोलते हैं
चंद पल मुस्कुराके
फिर से ज़िन्दगी के रज़म में उलझ पड़ते हैं
जब यह कार ख़तम होगा
तो फिर से उम्मीद हैं के राह रास्त होगी
उसी पे चलेगा कारवां
और खुदा से मुलाकात होगी.
प्रोनिल (२८ अगस्त २००६)
रुक के मुस्कुराने को is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial 3.0 Unported License.
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