Sunday, October 16, 2022

पहचान

 पहचान 


रहता हूँ भीड़ में, तन्हाई दिल में लिए

आया था अकेला मैं, जाऊंगा खाख हाथ में लिए 

सुबह की रौशनी में, गीत गुनगुनाता हु 

रात के अँधेरे में, अपने साये से भी अनजाना हु 


यूं तो ज़िन्दगी में, सब कुछ हासिल है 

कुछ है नहीं मगर इस महफ़िल में 

चेहरे में हसी लिए, जज़्बात दफनाता हु 

लोगो को आस पास खुश देख ही लुफ्त पाता हु 


रहना तो मई भी चाहता हु बंजारों सा 

घूम घूम बिन किनारे नदी के धारो सा 

यादों में बसना चाहता हु ईश्वर की कला 

चाहता हूँ रब की रचनाओं से रूबरू होना 


ज़िन्दगी तो जीनी है अपनों के साथ 

पथ्थरो के राह पे तो चलना है अकेला 

सपनो को पूरा हम भी करेंगे 

बस बटे हुए है अपनों और अपने के दरमियान… 


प्रोनिल 

(१० दिसंबर २०१४)